DECEMBER 9, 2022
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Mount Everest ke Uper se kya dikhta hai

Mount Everest ke Uper se kya dikhta hai

The Heroes of Everest
दुनिया के सबसे बड़े शेखर माउंट एवरेस्ट को सफ़र करने की शुरुआत 1921 से ही हो चुकी थी । लेकिन चोटी तक कोई नहीं पहुँच पा रहा था , और एवरेस्ट की चोटी तक पहुंचना आसान भी नहीं था, क्योंकि वहाँ तक पहुँचने के लिए बेहद मुश्किल, खतरनाक हालातों से गुजरना पड़ता था, क्योंकि 29 हजार 28 फीट की इस मंजिल की रास्तों में बहुत सारे मौत के दरवाजें हैं । इस मिशन में कई लोग असफल हुए, कई लोगों ने अपनी जान गवां दी और बहुत सारे लोगों का शव तो आज भी उस बर्फीले चट्टानों के भीतर दबा पड़ा है , जिसे आजतक वापस नहीं लाया गया I लेकिन फिर भी साहस के सुर वीरों ने हिम्मत नहीं हारी और वह एवरेस्ट की चोटी तक पहुँचने का लगातार प्रयास करते रहे । इन सारी साहस वीरों में से एक एक थे शेरपा तेनजिंग नोर्गे । सन् 1952 में नेपाल के शेरपा तेनजिंग के दिमाग पर एवरेस्ट को सफर करने का जुनून सवार था, तब स्वीटजरलैंड के रैमन लेम्बल्ड और शेरपा तेनजिंग ने एवरेस्ट को सफर करने का प्रयत्न किया था लेकिन वह उसमें    निः सफल साबित हुए थे । 1952 में तेनजिंग और रैमन लगभग पूरे पहाड़ पर चढ़ गए थे । लेकिन बेहद कठिनाइयों के चलते उन्हें एवरेस्ट की चोटी से महेश 1000 फुट की दूरी से ही वापस आना पड़ा, मंजिल से इतना करीब होकर भी वापस आने का दुख उन दोनों को था, लेकिन तेनजिंग हार नहीं मानी । फिर से एक साल बाद सन् 1953 में तेनजिंग साथ अंग्रेज और दो न्युजीलैंड के पर्वतारोही के साथ एवरेस्ट के अभियान के लिए निकल गए ।

तेनजिंग और एडमण्डहेनरी के टीम ने पहाड़ चढ़ने की शुरूआत 9अप्रैल 1953 में की । बर्फीले रास्ते - temprature खाइयों के बीच वो लोग एक के बाद एक कैंप लगाकर अपने मंजिल की और बढ़्‌ते रहे । Edmund Henry और तेनजिंग के टीम धीरे-धीरे एवरेस्ट चोटी की नजदीक आते रहे । उनसे पहले चढ़ाई को शुरू करने वाली चार्ल्स इवान की नौ सभ्यों की टीम थी जो तेनजिंग के टीम से आगे चढ़ने वाली थी । अगर किसी कारण इवान की टीम एवरेस्ट चढ़ने में निः सफल हुए या चढ़कर वापस आ जाए उसके बाद ही तेनजिंग के टीम को आगे बढ़ना था । हेनरी और तेनजिंग लगभग आधे से ऊपर सफर कर लिया था । एवरेस्ट के चोटी से पहले आने वाली ये आखिरी छोर सबसे खतरनाक माना जाता है , जहाँ पर पहुँचते पहुँचते कई लोगों ने अपनी जान गवांई है।
  26 मई के दिन इवान की टीम एवरेस्ट के शेखर से सिर्फ 300 फुट की दूरी पर थे । लेकिन वो लोग थक चुके थे, उनके शरीर ने जवाब दे दिया था । उनमें एक कदम भी आगे बढ़ने का हौसला नहीं था और वह वापस लौट गए। यहाँ पर इतिहास किसी और के नाम ही लिखा जाने वाला था । इवान के टीम के लौटते ही अब तेनजिंग और हेनरी के टीम को आगे बढ़ना था । रात में सोने के बाद सुबह तेनजिंग और उनके टीम ने अपनी मंजिल की ओर कदम बढ़ाए । वो कुदरत और अपने कठिनाइयों का सामना करते करते एक के बाद एक कदम आगे बढ़ाते गए और सुबह के 9 बजे वो लोग दक्षिण शेखर तक पहुँचे । आक्सीजन धीरे-धीरे खत्म हो रहा था और उनके पास इतना आक्सीजन नहीं था कि वह अभियान को ठीक से खत्म कर सके । तेनजिंग की गनि धीमी हो रही थी उनके पाँव धीरे - धीरे भारी हो रहे थेवो लोग एक के बाद एक ऐसी आने वाली कठिनाइयों को मार देते रहे और अपने कदम एवरेस्ट की चोटी तक लोग बढ़ाते रहे और आखिर र्में 29 मई 1953 के दिन शेरपा तेनजिंग और हिलेरी का नाम इतिहास में दर्ज हो गया । जब वह सुबह सबसे ऊँची चोटी 29                 हजार 28 फीट, यानी 8848 मीटर की ऊँचाई पर पहुंचे तब उनके खुशियों का ठिकाना नही था।                 
                        29 मई 1953 को नेपाल के शेरपा तेनजिंग और न्युजीलैंड के एडमंड हेनरी ने पहली बार माउंट एवरेस्ट पर चढ़े थे । यही वजह है इस दिन को दुनिया भर में अंतराष्ट्रीय माउंट एवरेस्ट दिवस ( International Maunt Everest Day) के तौर पर मनाया गया ।
दुनिया का सबसे ऊँचा पर्वत माऊंट एवरेस्ट पर हर पर्वतारोही का सपना होता है कि वह एक बार  जरूर
जाएँ । ये खुबसूरत पर्वत नेपाल में स्थित है और नेपाल और तिब्बत की सीमा को चिन्हित करता है । हर साल सैकड़ो एडवेंचर्स लोग एवरेस्ट पर चढ़ने की कोशिश करते हैं । माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने का खर्च आता है करीबन 80 लाख रुपए |

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