पिछले कुछ सालों से corona महामारी से ग्रस्त पूरी दुनिया पर इस महामारी से उभरा ही नहीं था कि अब और एक नया वायरस मंडरा रहा है, जिसका नाम है मंकी पॉक्स | मंकी पॉक्स नाम की बीमारी तेज़ी से लोगों को अपना शिकार बना रही है I पहली बार ब्रिटेन, इटली, पुर्तगाल, स्पेन, स्वीडन , उफ्रीका, यूरोप और उत्तरी अमेरिका समेट करीब 12 देशों मे मंकी पॉक्स का मामले सामने आया है । अभी तक के इन देशों में 100 के करीब मरीज़ मिल चुके हैं ।
राहत की बात यह है कि अब तक भारत में मंकी पॉक्स बीमारी की एक भी मामले सामने नहीं आया है । भारत के स्वास्थ मंत्रालय ने कहा है कि घबराने की जरूरत नहीं है, मंकी पॉक्स अभी भारत में नहीं फैला है, हलांकि इस वायरल infection पर कड़ी नजर रखी जा रही है । प्रभावित देशों से आने वाली लोगों की जाँच भी हो सकती है । केन्द्र सरकार ने इसे लेकर नेशनल सेन्ट्रल फोर डिजिट कंट्रोल और Indian council of medical research को Elert रहने के लिए कहा है। who का कहना है जिन देशों में ये संक्रमण ( मंकीपॉक्स) नहीं फैला है, वहाँ मंकी पॉक्स के और ज्यादा मामले सामने आ सकते हैं । Monkeypox उन लोगों में फैल रहा है जो किन्हीं कारणों से physical contact में आए हैं।
who के officer डेविड हेमन ने कहा ऐसा लग रहा है कि मंकी पॉक्स इंसानों में सेक्स के जरिए ज्यादा फैल रहा है । इसके कारण दुनिया भर में इसके मामले बढ़ रहे हैं । who के मुताबिक Gay ( गे ) लोगों में इसका ज़्यादा खतरा है । who के अनुसार मंकी पॉक्स बीमारी का संक्रमण Gay और Bisexual तरह के यौन संबंध रखने वाले पुरुषों में सबसे ज्यादा मिला है। who का कहना है साउथ अफ्रीकन देशों में हर साल मंकी पॉक्स से हजारों लोग संक्रमित होते हैं ।
आइए जानें आखिर क्या है ये मंकी पॉक्स
मंकी पॉक्स एक ओर्थो पोक्स वायरस है , जो चेचक की जैसा होता है, लेकिन उससे कम गंभीर है । मंकी पॉक्स एक दुर्लभ जूनोटिक बीमारी है, यानि जानवरों से मनुष्य में फैलने वाली वायरल बीमारी है , यह एक वायरस है। 1958 में बंदरों में दो चेचक जैसे बीमारियाँ का पता लगा था, उन्हीं में एक मंकी पॉक्स था। सबसे पहले इन्हें बंदरों में पाया गया था इसलिए झ्स बीमारी का नाम मंकी पॉक्स रखा गया ।
मंकी पॉक्स विषाणु से मानव संक्रमण का पहला मामला साल 1970 में डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो में एक 9 वर्षीय लड़के में सामने आया था | अबतक इस मंकी पॉक्स विषाणु के दो अलग - अलग अनुवंशिक समूहों की पहचान की जा चुकी है, कांगो बेसिन वंश और पश्चिम अफ्रीकी ब्लैड वंश । भौगोलिक रूप से इन दोनों वंशों के विभाजन के रूप में कैमरून देश को जाना जाता है , क्योंकि यह झ्स देश में दोनों मंकी पॉक्स विषाणु समूह पाए गए हैं ।
who के मुताबिक मंकी पॉक्स वायरस का लक्षण - 6से 13 दिनों के भीतर दिखाई पड़ते हैं, हलांकि कुछ मामलों में यह समयावधि 5 से 21 दिन तक भी हो सकती है । इसके लक्षणों में - बुखार, तेज सिर दर्द, पीठ दर्द, मांसपेशियों में दर्द, और शरीर में विशेष कमजोरी या थकावट महसूस होना, चेहरे और हाथों पर पानी और घाव होना मंकी पॉक्स के प्रमुख
लक्षण है ।
मंकी पॉक्स वायरस की रोकथाम के लिए, इसके जोखिम कारकों के बारे में जानकारी हमें लोगों को बताना उन्हें जागरूक करना और उन्हें शिक्षित करना जरूरी है | क्योंकि इस वायरस के लिए अब तक कोई भी विशिष्ट उपचार उपलब्ध नहीं हो सका है । फिलहाल इसके उपचार के लिए वैक्सीनिया वैक्सीन का ही उपयोग किया जा रहा है, जो कि चेचक उन्मूलन के कारण प्रयोग किया गया था । Who ने कहा है कि कई अध्ययनों में यह वैक्सीन मंकी पॉक्स को रोकने में लगभग 85% प्रभावी पायी गयी है l